फिर मिल रहे है हम एक नए रूप मे
"वक्त बेवफा होता है इन्सान नही" - सच है कि वक्त के आगे किसी का कुछ चलता नही है। बहुत कोशिश की मैंने वक्त और समाज से लड़ने की, पर असफल रहा और मजेदार बात यह है कि यह असफलता उन्ही के कारण मिली जिनके लिए मैंने ये लडाई आरम्भ की थी।
"दर्द पराया अपना जानो" का आदर्श लेकर जब दुनियादारी और कार्यक्षेत्र मे उतरा तो सामने भरा पुरा मैदान था कम करने के लिए। और पुरे जोश ओ खरोश से मै अपने कम मे जुड़ गया था। कुछ समय तक लगा भी कि आर्थिक ना सही पर सामाजिक स्तर पर मेरे काम को पहचान मिल रही है। जिनके लिए मै काम कर रहा हूँ कम से कम वो तो इस बात को मान रहे है। पर जल्द ही यह भ्रम ख़त्म होने लगा। सच्चाई सामने आई तो पता चला कि कही कोई बात नही थी, बस बड़े ही प्यार से मेरा उपयोग कर जरुरत ख़त्म होने के बाद दूध मे पड़ी मक्खी की तरह निकल फेका गया।
जीवन मे मुहब्बत सब करते है, जाने या अनजाने मे। मैंने भी किया और मुह्हबत के लिए आसमान से तारे तोड़ने का कोई जज्बा तो नही था पर जो कुछ मै कर सकता था उससे ज्यादा करने का माद्दा जरुर था। पर वह रे वक्त, सबसे बड़ी बेवफाई वही मिली जिसके लिए मैंने सब छोड़ा। जिंदगी मे किशोरावस्था से ही एक एक कर अपनो का साथ छुटता चला गया था। और कारण एकमात्र यही था कि मै किसी को भी अपना उपयोग करने की छुट नही दे सकता था।
कुछ ऐसे रिश्ते जो नए बनते है और जिनसे बहुत ज्यादा आश लगी होती है वह से जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा मिला। धीरे धीरे सब से कटता चला गया ख़ुद से भी और दुनिया से भी। थोड़ा भावुक होने और संवेदनशीलता के कारण मै ज्यादा लोगो से तो नही जुड़ा पर जिनसे भी जुड़ा बहुत मन से और दिल से जुड़ा।
और वक्त ऐसा भी आया कि लगा कि हाथ से सब कुछ छुट गया है। और तब अगर कुछ बचा तो बस यही कि अब तो मुक्ति पा लेनी चाहिए। फिर क्या, सबसे मिलाने की कोशिश की। बहुतो से मिला भी। और जब 'कत्ल की रात ' आई तो ना जाने कहा से मानव रूप मे देवदूत आ पहुचे। और उनकी कही बातों ने जाने कैसा जादू किया कि मै अपना सोचा नही कर सका। एक ऐसा निर्णय जिसे किसी कीमत पर मै नही बदल सकता था, वो बदल गया और मैंने फिर से लडाई लड़ने की ठान ली।
आगे तो वक्त बताएगा कि क्या होना है, पर कुछ चीजे मै जरुर कहना चाहता हूँ:
कहते है कि वक्त सबसे बड़ा मरहम होता है, पर मुझे लगता है कि दिल पर लगा घाव किसी मरहम से सही नही होता।
कहते है कि इश्वर जो करता है अच्छा करता है, पर इश्वर को भी पता नही कि अच्छा क्या है और किसी का अच्छा कैसे करे।
और अंत मे मै ये कहना चाहूँगा कि जिस इन्सान ने मुझे इस वक्त संबल दिया उसका ऋण तो मै पुरी जिंदगी नही उतर सकता पर ये वक्त जरुर बताएगा कि उनके लिए मेरे मन मे क्या है और वक्त आने पर ही पता चलेगा कि मै क्या कर सकता हूँ।
दोस्तों, अब फिर से नियमित रूप से आपको मेरा ब्लॉग मिलता रहेगा।
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